Kashi Vishwanath: हज़ारों साल पुराना है काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास, पढ़ें मंदिर बनने और टूटने की दिलचस्प कहानी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) आज वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के पहले चरण को (Kashi Vishwanath Corridor) लोगों को समर्पित करेंगे. कहा जा रहा है कि इस बड़े प्रोजेक्टस से वाराणसी में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इस काम को शुरू करने के लिए 8 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री ने परियोजना की आधारशिला रखी थी. इस परियोजना की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये परियोजना अब लगभग 5 लाख वर्ग फुट के विशाल क्षेत्र में फैली हुई है, जबकि पहले संबंधित परिसर तकरीबन 3000 वर्ग फुट तक ही सीमित था.
आईए एक नज़र डालते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास पर. कब इस मंदिर का निर्माण हुआ और किन-किन लोगों ने इसे तुड़वाए…
ज्योतिर्लिंग: काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है. ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
1वी सदी में निर्माण: ये मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है. कहा जाता है कि इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था. साल 1194 में मुहम्मद गौरी ने इसे तुड़वा दिया था. मंदिर को एक बार फिर से बनाया गया लेकिन साल 1447 में इसे फिर से जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया. इतिहास के पन्नों को पलटे तो पता चलता है कि काशी मंदिर के निर्माण और तोड़ने की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रही.
शाहजंहा ने तुड़वाने के लिए सेना भेजी: साल 1585 में राजा टोडरमल की मदद से पंडित नारायण भट्ट ने इसे बनाया था लेकिन साल 1632 में शाहजंहा ने इसे तुड़वाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेज दी. हिंदूओं के विरोध के कारण सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई. कहा जाता है कि 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने इस मंदिर को ध्वस्त कराने के आदेश दिए थे.
मौजदा मंदिर का निर्माण कब: मौजदा मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने 1780 में करवाया था. बाद में महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम सोना सोना दान दिया था.
दर्शन करने वालों की लंबी लिस्ट: कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास भी आए थे.
मंदिर के पास मस्जिद भी: मंदिर के साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद है. कहा जाता है कि मस्जिद मंदिर की ही मूल जगह पर बनाई गई है. ज्ञानवापी मस्जिद को मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाया था. इसके अलावा यहां आलमगिरी मस्जिद है, इसे भी औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाया था.
source : BBC NEWS